sharad kaise kare [ श्राद्ध करने की विधि का शास्त्र में प्रमाण]

आज हम जानेंगे कि हमे श्राद्ध करने चाहिए या नहीं और यदि श्राद्ध करें तो उसकी सही विधि क्या है ? इसके लिए हम अपने शास्त्रो का प्रमाण लेंगे।

shardh  kare ya na kare
sharad kaise kare

श्राद्ध करने की विधि का शास्त्र में प्रमाण

श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 व 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानि शास्त्र अनुसार साधना करने वाले साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध भोज में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित तथा सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
विवेचन :- यदि आप संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान को सुन-समझकर व दीक्षा लेकर साधना करते हैं तो आप योगी यानि शास्त्रोक्त साधक हैं। संत रामपाल जी महाराज सत्संग समागम करते हैं। उसमें भोजन-भण्डारा (लंगर) भी चलाते हैं। जो व्यक्ति उस भोजन-भण्डारे में दान करता है। उससे बने भोजन को योगी यानि संत रामपाल जी महाराज के शिष्य तथा संत रामपाल जी महाराज खुद भी खाते हैं।
संत रामपाल जी महाराज सत्संग सुनाकर नए व्यक्तियों को यथार्थ भक्ति ज्ञान बताते है। शास्त्रों के प्रमाण प्रोजेक्टर पर दिखाते है। जिस कारण से श्रोता शास्त्रा विरूद्ध साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना करते हैं। जिससे उस परिवार का उद्धार होता है। उनके द्वारा दिए दान से बने भोजन को भक्तों ने खाया। इससे पितरों का भी उद्धार हुआ। पितर जूनी छूटकर अन्य जन्म मिल जाता है। सत्संग में यदि हजारों ब्राह्मण भी आएं हों तो वे भी सत्संग सुनकर शास्त्रा विरूद्ध साधना त्यागकर अपना कल्याण करवा लेंगे।

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इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि वर्तमान में मानव समाज शिक्षित है, वह अवश्य ध्यान दे तथा शास्त्रा विधि अनुसार साधना करके पूर्ण परमात्मा के सनातन परमधाम (शाश्वतम् स्थानम्) अर्थात् सतलोक को प्राप्त करे जिससे पूर्ण मोक्ष तथा परम शान्ति प्राप्त होती है।(गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में जिसको प्राप्त करने के लिए कहा है।) इसके लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करो। (गीता अध्याय 4 श्लोक 34 )


गीता अध्याय 15 श्लोक 4
Gita Adhyay 15 Shalok 4
प्रश्न: यदि कोई श्रद्धालु संत रामपाल जी महाराज से उपदेश लेकर उनके द्वारा बताई साधना भी करता रहे तथा श्राद्ध भी निकालता रहे तथा अपने घरेलू देवी-देवताओं को भी उपरले मन से पूजता रहे तो इसमें क्या दोष है?
उत्तर: संत रामपाल जी महाराज की प्रार्थना :- संविधान की किसी भी धारा का उल्लंघन कर देने पर सजा अवश्य मिलेगी। इसलिए पवित्र गीता जी व पवित्र चारों वेदों में वर्णित व वर्जित विधि के विपरीत साधना करना व्यर्थ है। (प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23-24 में) यदि कोई कहे कि मैं कार में पैंचर उपरले मन से कर दूंगा तो ध्यान रखना राम नाम की गाड़ी में पैंचर करना मना है। ठीक इसी प्रकार शास्त्रा विरुद्ध साधना हानिकारक ही है।
प्रश्न: एक श्रद्धालु ने कहा कि मैं और कोई विकार (मदिरा-मास आदि सेवन) नहीं करता। केवल तम्बाखू (बीड़ी-सिगरेट-हुक्का) सेवन करता हूँ। आपके द्वारा बताई पूजा व ज्ञान अति उत्तम है। मैंने गुरु जी भी बनाया है, परन्तु यह ज्ञान आज तक किसी संत के पास नहीं है, मैं 25 वर्ष से घूम रहा हूँ तथा तीन गुरुदेव बदल चुका हूँ। कृप्या मुझे तम्बाखू सेवन की छूट दे दो, शेष सर्व शर्ते मंजूर हैं। तम्बाखू से भक्ति में क्या बाधा आती है?
उत्तर: संत रामपाल जी महाराज की प्रार्थना :- जैसे अपने शरीर को ऑक्सीजन की आवश्यकता है। तम्बाखू का धुआँ कार्बन-डाई-ऑक्साइड है जो हमारे फेफड़ों को कमजोर व खून को दूषित करता है। हमें मानव शरीर भगवान को पाने व आत्म कल्याण के लिए ही प्राप्त हुआ है। इसमें परमात्मा पाने का रस्ता सुष्मना नाड़ी से प्रारम्भ होता है। जो नाक के दोनों छिद्र हैं उन्हें दायें को ईड़ा तथा बाऐं को पिंगुला कहते हैं। इन दोनों के मध्य में सुष्मणा नाड़ी है जिसमें एक छोटी सूई (needle) में धागा पिरोने वाले छिद्र के समान द्वार होता है जो तम्बाखू के धुऐं से बंद हो जाता है।
जिससे प्रभु प्राप्ति के मार्ग में अवरोध हो जाता है। यदि प्रभु पाने का रस्ता ही बन्द हो गया तो मनुष्य शरीर व्यर्थ हुआ। इसलिए प्रभु भक्ति करने वाले भगत के लिए प्रत्येक नशीले व अखाद्य (माँस आदि) पदार्थों का सेवन निषेध है।
प्रश्न: एक श्रद्धालु ने कहा कि मैं तम्बाखु प्रयोग नहीं करता। माँस व मदिरा सेवन जरूर करता हूँ। इससे भक्ति में क्या बाधा है? यह तो खाने-पीने के लिए ही बनाई है तथा पेड़-पौधों में भी तो जीव है, वह खाना भी तो मांस भक्षण तुल्य ही है।
उत्तर: संत रामपाल जी महाराज की प्रार्थना :- यदि कोई हमारे माता-पिता-भाई-बहन व बच्चों आदि को मारकर खाए तो कैसा लगे?
जैसा दर्द आपने होवै, वैसा जान बिराने।
कहै कबीर वे जाऐं नरक में, जो काटें शिश खुरांनें।।
कबीर साहेब
जो व्यक्ति पशुओं को मारते समय खुरों तथा शीश को बेरहमी से काट कर माँस खाते हैं, वह नरक में जायेगे। जैसा दुःख अपने बच्चों व सम्बन्धियों की हत्या का होता है, ऐसा ही दूसरे को जानना चाहिए। और रही बात पेड़-पौधों को खाने की। इनको खाने का प्रभु का आदेश है तथा ये जड़ जूनी के हैं। अन्य चेतन प्राणियों की हत्या प्रभु आदेश विरुद्ध है, इसलिए अपराध (पाप) है।
मदिरा सेवन भी प्रभु आदेश नहीं है, और स्पष्ट मना है तथा मनुष्य जन्म को बर्बाद करने के लिए है। शराब पान किया हुआ व्यक्ति कुछ भी गलती कर सकता है। शारबी व्यक्ति धन-तन व पारिवारिक शान्ति तथा समाज का महाशत्रु है। छोटे बच्चों के चरित्र पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है। मदिरा पान करने वाला व्यक्ति कितना ही नेक हो परन्तु उसकी न तो इज्जत होती है तथा न ही उसका कोई विश्वास करता है।
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Milan Tomic

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