Friday, February 21, 2020

कैसे हनुमान जी कबीर साहेब के शिष्य बने




कैसे हनुमान जी कबीर साहेब के शिष्य बने
कैसे हनुमान जी कबीर साहेब के शिष्य बने
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बात है त्रेता युग कि जब राजा रावण सीता माता का अपहरणकरके अपने साथ श्रीलंका ले गया और सीता को अपने नौ लखा बाग में बंदी बना लिया था।  तब श्री रामचंद्र और उनके भाई लक्षमण सीता की खोज में जंगल में इधर से उधर भटक रहे थे तो उनकी मुलाकात उनके परमभक्त हनुमान से हुई जिन्होंने सीता माता की खोज की और श्री रामचंद्र जी को सुचना दी की आपकी भार्या माता सीता श्रीलंका के राजा रावण के हिरासत में है।

हनुमान का सीता माता की खोज मे रावण की नगरी लंका मे पहुँचना

जब हनुमान जी सीता माता की खोज करते हुए श्रीलंका पहुंचे तो उन्हें बंदी बना लिया गया और उनको रावण के समक्ष पेश किया गया। रावण ने उससे पूछा कि तुच्छ वानर बताओ तुम कौन हो और यहाँ क्या लेने के लिए आये हो?
तब हनुमान जी ने सारा का सारा वृतांत सुनाया कि हे राजन मैंने सुना था की आप बहुत ही पराकर्मी और बलशाली राजा हो और तो और तीनो लोको में आप जैसा ज्ञानी कोई नहीं है, अपनी प्रशंसा सुनकर रावण बहुत ही खुश हो रहा था लेकिन जब श्री हनुमान जी ने कहा की इतने बलशाली होते हुए भी आप एक स्त्री का हरण करके लाये हो, ये आपको कदाचित शोभा नहीं देता महाराज। क्या आपको पता है अपने जिस स्त्री का हरण किया है वह कौन है और किसी पत्नी है?
सीता माता स्वयं देवी लक्ष्मी का रूप हैं जो भगवान् विष्णु जी की पत्नी हैं और श्री रामचंद्र जी भगवान् विष्णु का ही अवतार हैं। अतः महाराज रावण मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप माता सीता को श्री रामचंद्र जी को सौंप दे और उनसे क्षमा मांग लें। वे आपको अवश्य माफ़ कर देंगे अनयथा आपका सारा का सारा साम्राजय पतन की कगार पर है।

श्री लंका के राजा रावण का हनुमान जी की पुंछ मे आग लगाना

यह सुनकर राजा रावण गुस्से से लाल पीला हो गया और उन्होंने सेनापति से कहा कि इस वानर की इतनी हिम्मत की मेरे दरबार में मेरे दुश्मन की प्रशंसा कर रहा है। इसे अभी मृत्यु दंड दे दिया जाये।
रावण का आदेश पाकर सेनापति ने सनिकों को आदेश दिया कि वानर रूप हनुमान की पूंछ में आग लगा दी जाये लेकिन हनुमान जी ने पूंछ में आग लगने के पश्चात् लंका को जला दिया था।  जब श्री हनुमान जी वापिस लौट रहे थे तो सीता माता ने उन्हें निशानी के तौर पर एक कंगन दिया और कहा कि श्री राम जी को ये कंगन दिखाना।

हनुमान जी से सीता माता का कंगन चोरी हो जाना

सीता माता का एक कंगन लेकर जब हनुमान जी वापिस समायोजन समुन्द्र को पार कर रहे थे तो उन्होंने सोचा की क्यों न थोड़ा विश्राम कर लिया जाये और वे एक सुंदर से पर्वत पर आकर विश्राम करने लगे। वहां पर पास में ही एक पानी की झील को देखकर हनुमान जी प्यास से व्याकुल हो उठे और पानी पीने के लिए झील की और चल दिए और जब हनुमान जी पानी पिने लगे तो उन्होंने उस कंगन (जो उन्हें सीता माता ने निशानी के तौर पर) दिया था उसको एक पत्थर पर रख दिया।

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उसी समय वहां पर एक बन्दर आया और उस कंगन को उठाकर ले गया यह देख हनुमान जी भी उस बन्दर के पीछे-पीछे दौड़ पड़े। बन्दर पास में ही एक आश्रम में चला गया और कंगन को एक घड़े में दाल दिया। हनुमान जी भी कंगन और बन्दर दोनों पर अपनी पैनी नजर रखे हुए थे।  उन्होंने देखा कि बन्दर ने कंगन को एक घड़े में डाल दिया है। जब हनुमान जी उस कंगन को निकलने के लिए घड़े के पास गए तो उन्होंने देखा की घड़ा बहुत ही बड़ा है और उसमे और भी बहुत से कंगन पड़े हैं। हनुमान जी ने घड़े में से कंगन उठाया और देखा कि ये सभी कंगन तो एक समान है अब ये कैसे पता लगाया जाये की माता सीता का कंगन इनमे से कौन सा है?

हनुमान जी और कबीर साहेब जी (मुनीन्द्र ऋषि के रूप में) की मुलाक़ात

जब उन्होंने इधर-उधर देखा तो उनको एक महापुरुष दिखाई दिए।  हनुमान जी झट से उन महात्मा के पास गए और प्रणाम करते हुए बोले की हे ऋषिवर, मेरा आपको सदर प्रणाम ! मैं श्री राम भक्त हनुमान हूँ और मैं यहाँ सीता माता की खोज के लिए आया था।
जब मुझे सीता माता मिली तो उन्होंने मुझे निशानी के तौर पर अपना एक कंगन दिया था जो मुझे श्री राम जी तक पहुंचना था।  मैं वापसी में थकान के कारण इस पर्वत पर विश्राम करने लगा और झील पर पानी पीने और स्नान करने के लिए कंगन को एक पत्थर पर रख दिया था। इतने में ही एक बन्दर ने कंगन को उठाकर इस घड़े में डाल दिया है लेकिन उस घड़े में तो पहले से ही बहुत से कंगन पड़े हैं और सारे एक ही जैसे है इसलिए मैं उन्हें पहचान नहीं पा रहा हूँ, कृपया आप कंगन को पहचानने में मेरी मदद करें।
तब ऋषि जी हनुमान जी से बोले कि आप यहाँ विश्राम कीजिये और दूध पी लीजिये और आसन भी ग्रहण कर लो।  इस पर हनुमान जी फिर से बोले हे महात्मन! मेरी सारी की सारी मेहनत पर पानी फिर रहा है और आप मुझे आसन और दूध पीने के लिए कह रहे हैं। भला इस स्थिति में कोई कैसे खा पी सकता और आसन ले सकता है। हे महात्मन कृपया मेरी मदद करें।
वो ऋषि कोई और नहीं स्वयं मुनिंदर जी थे (जो साक्षात् भगवान कबीर साहेब जी) का अवतार थे। ऋषि मुनिंदर जी ने अपने उत्तर में कहा की हनुमान तुम इस कंगन को पहचान नहीं सकते हो अगर पहचान सकते तो आप इस काल की दुनिया में इन परेशानियों से न जूझ रहे होते। आपको इन परेशानियों का सामना ही नहीं करना पड़ता।
ऋषि मुनिंदर जी (परमेश्वर कबीर साहेब जी ) हनुमान से कहते हैं की आप किनकी बात कर रहे हैं कौन से राम और सीता?
पहले आप मुझे इनका परिचय दीजिये। हनुमान जी ने बहुत ही आश्चर्य के साथ पूछा की हे महातमन! आप श्री राम और सीता मैया के बारे में नहीं जानते हैं। ये तो सृष्टि में चरों और फैला हुआ है कि राजा दशरथ के घर एक पुत्र जन्म है जिसका नाम श्री राम चंद्र है और वो भगवान श्री विष्णु जी के अवतार हैं और सीता मैया जो उनकी धर्मपत्नी हैं वे साक्षात् देवी लक्ष्मीका अवतार हैं और इस अवतार में वे राजा जनक की पुत्री हैं। और तो और रावण श्री रामचंद्र जी की पत्नी का अपहरण करके ले गया है। क्या आप ये सब नहीं जानते हैं?

मुनीन्द्र ऋषि जी और हनुमान जी की वार्ता

तब ऋषि मुनिंदर जी कहते हैं कि श्री राम चद्र का कौन सा नंबर है जिसे मैं जानू। हनुमान जी और भी अचंभित होकर पूछते हैं कि श्रीराम का भी कोई नंबर है जिससे वो पहचाने जा सके।  तब भगवान् कबीर (मुनिंदर जी) कहते हैं कि भगवान श्री रामचन्द्र जी पता नहीं कितने जन्म ले चुके हैं लगभत 30 करोड़ बार। अब आप कौन से श्री राम चंद्र जी के बारे मे बात कर रहे है?
हनुमान जी पूछते है कि क्या श्रीराम चंद्र जी 30 करोड़ बार जन्म ले चुके है? मुनिंदर जी कहते हैं कि हाँ पुत्र ! जब श्री राम चंद्र जी अपना जीवन पूरा करके मर जायेंगे तो उनकी आत्मा भी तो जन्म लेगी ही, आत्मा ही तो सब कुछ है शरीर तो मात्र मिटटी है।  इसी तरह पता नहीं तुम्हारे जैसे हनुमान इस धरती पर कितने आये हैं। तुम सभी भगवान् श्री रामचंद्र जी और आप भी जन्म और मृत्यु में है।

मुनीन्द्र ऋषि जी की कुटिया का चमत्कारी मटका

अगर आपको यकींन नहीं हो रहा है तो इस घड़े को ही देख लीजिये। वर्तमान में यह घड़ा आपको प्रमाण दे रहा है। इस मटके मे ये गुण है कि इसमे आप जो भी डालोगे ये उसके जैसा दूसरा अपने आप बना देगा। आप इस घड़े में जो भी वास्तु डालेंगे यह उसकी वैसी ही दूसरी तैयार कर देगा।  बन्दर ने जो कंगन इसमें डाला है इस घड़े ने उसके दो कंगन तैयार कर दिए हैं।
इस घड़े मे जीतने भी कंगन है उतनी बार ही ये घटना घट चुकी है, हर बार आप सीता जी की खोज करके आते हो और आप कगन को पत्थर पर रख देते हो और ये बंदर उठा कर इस मटके मे डाल देता है। ऐसे आप हर बार एक कंगन इसमे से निकाल ले जाते हो और एक इसमे रह जाता है।
अतः यह पहचानना तो मुश्किल है कि वह कंगन कौन सा था लेकिन आप इसमें से एक कंगन ले जाओ सीता जी के दूसरे कंगन से मिला लेना, ये बिलकुल वैसा ही मिलेगा।

Source: Bhakti TV
ऋषि मुनिंदर जी हनुमान से कहते हैं कि आप जो भक्ति कर रहे हैं उसका तरीका सही नहीं है और न ही आप काल के जाल से मुक्त हो पाएंगे। इस पर हनुमान जी कहते हैं मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि आप ये किस तरह की बाते कर रहे हैं और न ही मेरे पास आपके साथ बात करने का पर्याप्त समय है जो मैं आपसे इस विषय पर चर्चा कर सकूं और समझ सकूं। इतना कहकर हुनमान जी कंगन लेकर वहां से उड़कर चले गए।
कुछ समय के बाद श्री राम और रावण की बीच में भीषण युद्धहुआ और इस युद्ध में रावण को अपने प्राण सहित अपने पुत्रो, भाइयों और सेना के प्राण भी गंवाने पड़े। सारी की सारी आसुरी शक्ति का विनाश हो चूका था। रावण की इस बुरी हार के बाद श्री राम सीता को अग्नि परीक्षा करके वापिस अयोध्या लेकर चले गए क्योंकि उनका वनवास ख़त्म हो चूका था और श्रीलंका का साम्राज्य रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया।

हनुमान जी और मुनिद्रर ऋषि की अगली मुलाक़ात

ऐसे ही कुछ समय बीतने के बाद एक दिन हुनमान जी एक पर्वत पर बैठे हुए श्री राम की साधना कर रहे थे तो वहां से भगवान कबीर जी (ऋषि मुनिंदर जी) गुजर रहे थे तो उन्होंने हनुमान जी से कहा की कैसे हो श्री राम भक्त! हनुमान जी ने उन ऋषि जी से पूछा की आप कौन है ऋषिवर! और ऐसा भी प्रतीत होता है की मानो हम पहले भी आपसे भेंट कर चुके हैं? तो मुस्कुराते हुए मुनिंदर जी ने कहा कि हाँ भक्त हम पहले भी मिल चुके हैं।
अगर आपको याद हो कि आप सीता जी की खोज करने के लिए रावण के साम्राज्य गए थे और वहां आपको सीता जी ने एक कंगन दिया था जो आपको श्री रामचन्द्र जी को देना था और आप समायोजन समुन्द्र को पार करते वक्त थक चुके थे और आराम करने के लिए आप एक पर्वत पर विश्राम करने के लिए कंगन को एक पत्थर पर छोड़कर स्नान करने के लिए चले गए उसी दौरान एक बन्दर ने आपके कंगन को उठाया और आश्रम में रखे घड़े में डाल दिया था तब आप उसे पहचान नहीं पाये रहे और उस घड़े में से एक कंगन लेकर चले गए थे तब आप जिस ऋषि से मिले थे और वो ऋषि आपको काल चक्र के बारे में बता रहे थे।

hanuman ke guru ji
और हमारी दूसरी भेंट तब हुई थी जब सीता की खोज के बाद रावण ने शांति प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और युद्ध के लिए ललकारा था। लेकिन युद्ध तभी संभव था जब समायोजन समुन्द्र को पार किया जा सकता था लेकिन समुन्द्र को पार करने के लिए एक पूल की आवश्यकता थी और पूल बन नहीं रहा था और समुन्द्र देव खुद भी रास्ता देने में असमर्थ थे तब श्री राम ने मेरा आह्वान करने मुझसे सहायता मांगी थी और पूल बननाया था। मैं वही ऋषि मुनिंदर हूँ भक्त !

हनुमान जी और मुनिद्रर ऋषि की ज्ञान चर्चा

हनुमान जी याद करते हुए बोले कि हे महात्मन! मुझे याद आ गया आपको मेरा सदर प्रणाम ! हे महात्मन आप खड़े क्यों है तनिक यहाँ विराजमान हो जाइये।  हनुमान जी बहुत ही भगवान् में श्रद्धा भाव रखने वाले और मेहमान का आदर करने वाले महापुरुष थे।
तब ऋषि मुनिंदर जी कहते हैं (बहुत ही सहज और प्रेमभाव से) कि हनुमान जी मैंने आपको पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि आपकी भक्ति करने का तरीका सही नहीं है और न ही आप काल के जाल से मुक्त हो सकते हो।  मैं आपको यह नहीं कहता कि आप श्री राम की भक्ति को छोड़ दो। बस मैं आपको यही कह रहा हूँ कि आप भक्ति का सही मार्ग अपना ले जिससे आप काल के जाल से मुक्त हो सकते हैं।
आपके श्री राम जी भी इसी जाल में फंसे हुए हैं। तब हनुमान जी कहते हैं कि मैंने तो अब तक यही सुना था की भगवान् विष्णु जो इस धरती पर श्री राम के रूप में अवतार लिए हुए हैं वो ही तीनो लोको के भगवान् है वो ही सर्वोच्च हैं। तब भगवान् कबीर ने सम्पूर्ण सृष्टि रचना सुनाई।
हनुमान जी उनके इस वचनो से बहुत प्रभावित हुए और कहने लगे कि हे ऋषिवर मैं श्री राम जी से दूर नहीं रह सकता और न ही उनकी भक्ति छोड़ सकता हूँ। हाँ, मैं आपके सतलोक पर तभी विश्वास कर सकता हूँ जब आप यह सब मुझे मेरी आँखों से दिखाएंगे।
सारी चर्चा होने के बाद भगवान् कबीर (ऋषि मुनिंदर जी) वहां से हनुमान जी की आत्मा को साथ लेकर आकाश में उड़े और सतलोक में पहुंच गए। वहां जाकर उन्होंने हनुमान जी को तीनो लोको के देवताओं को दिखाया और काल को भी दिखाया जो प्रतिदिन हज़ारो लाखों लोगों को खा रहा था।
यह सब कबीर साहेब जी आकाश में अपने दिव्य रूप से हनुमान जी को दिखा रहे थे, जो पृथ्वी पर बैठा हुआ था। उन्होंने यह भी बताया की काल को क्षर पुरुष, ब्रह्म, और ज्योति स्वरूपी निरंजन के रूप में भी जाना जाता है और भगवान् कबीर जी ने हनुमान को अपने दिव्य रूप के दर्शन भी करवाए।  दिव्य रूप को पाकर हनुमान जी बहुत ही प्रसन्न हुए और करुणा भरे स्वर में कहा कि हे भगवन! कृपया आप निचे आ जाये और मुझे नासमझ बालक समझ कर क्षमा कर दे।
हे भगवन मुझे अपनी शरण में ले लें और मेरा मार्गदर्शन करे। तब परम परमेश्वर भगवान कबीर (ऋषि मुनिंदर जी) ने हनुमान को नाम दीक्षा दी और फिर सतनाम दिया जिसे पाकर हनुमान जी मोक्ष प्राप्त करने के योग्य हुये।
कबीर सागर के हनुमान बोध में इसका साक्ष्य है। 
कबीर सागर का हनुमान बोध आप यहाँ से डाउनलोड करके पढ़ सकते है।
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